पैसा जो न खरीद पाया !!!
पैसा जो न खरीद पाया,वो है प्यार !!!
पैसा जो न खरीद पाया वो है प्यार , इस चित्र मैं दिखता हुआ प्यार बाप और बेटी का है.. दोनों गरीबी में जी रहे है परन्तु बेटी आज भी अपने पिता को राजा जैसा मानती है और पिता भी अपनी बेटी को अपनी जिन्दगी का सब कुछ मानता है. .
पैसा जो न खरीद पाया, वो है सम्मान!!!
पैसा जो न खरीद पाया वो है सम्मान, जिसे कड़ी मेहनत से कमाना पड़ता है किसी भी मंडी में ये न तो मिलता है और ना ही मिलेंगा. हाँ इसे कड़ी मेहनत के बल पर बनाया या अर्जित किया जा सकता है. सम्मान पाने के लिए करनी और कथनी में मिलाप होना जरूरी होता है वरना चाटुकारिता भी एक सम्मान होता है..
पैसा जो न खरीद पाया,वो है योग्यता!!!
पैसा जो न खरीद पाया वो है योग्यता,जो की परिस्थितीवश सबके हिस्से में नहीं आ पाती और जिसे पाने के लिए बहुत सारे त्याग की आवश्यकता होती है.शिक्षित और ज्ञानी तो बहुत है समाज में पर बहुत कम ही लोग है जो योग्य है..
पैसा जो न खरीद पाया,वो है मित्रता!!!
पैसा जो न खरीद पाया वो है मित्रता. मित्रता एक दुर्लभ जिम्मेदारी न की अवसर. सिक्के के दो पहलु जैसी होती है मित्रता - सम्पन्नता आपकी मित्रता में इझाफा करती है और विप्पती उसकी परख.बहुत सारे लोग मित्रता की परख करते रह जाते है और कोई इसे संजो कर निभाता चला जाता है..
पैसा जो न खरीद पाया, वो है विश्वास!!!
पैसा जो न खरीद पाया वो है विश्वास.विश्वास बहुत ही छोटा और सरल शब्द है परन्तू पुरी दुनिया इस शब्द में समाहित है.विश्वास वैचारिक, भावनात्मक और आर्थिक आयामो से बंधा होता है जिसे हम रोज़मर्रा की
बातो में हमारे शब्द,हमारे समय, हमारे व्यवहार से तौलने की कोशिश करते
है. विश्वास खुद पर हो तो ताकत, दुसरो पर हो तो हिम्मत बन जाता है.
स्वामी विवेकानंदजी ने बहुत ही बढ़िया तरीके से विश्वास को परिभाषित किय है-
वह नास्तिक है जो अपने आप में विश्वास नहीं रखता..
अमित .....
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