January 30, 2018

यात्रा जिंदगी की!!!!


यात्रा जिंदगी की!!!!

यात्रा जिंदगी की,जो कि शुरू तो बहुत पहले से हो जाती है पर एहसास तो कहीं रुकने पर होता है।



हर भावनाये जिसे हम विभिन्न परिस्थियों में अपने अपने तरीके से उपयोग करते है, वह सब हमारे साथ होते है इस यात्रा में।

सहयात्री, जो की हमारे ही अपने होते है बस रूप -भेष अलग अलग होते है। जिन्हें हम रिश्तेदार,परिवार,दोस्त के उपनामों से पहचानते है।

हमारी जो यात्रा होती है,उसका सफर बहुत बढ़िया होता है कोई मंजिल पर पहुच के यात्रा का आनंद लेता है और कुछ इस यात्रा में मंजिल तक पहुचने के बीच में आनंद लेते है।

जीवन की यात्रा में हमें कई सारे जाने - अनजाने लोग मिलते है और हर यात्रा के हर सहयात्री के साथ कि एक कहानी होती है जिसे अनुभव कहा जाता है और अनुभव एक समय के अंतराल के बाद कहानियां बन जाती है। जिसे हर किसी के साथ बाटने में वही आनंद की अनुभूति होती है जैसी की वर्तमान यात्रा के समय हुई होती है। एक बार और जी लेते है उस पल को हम ,कहानी के भरोसे .

हम जिन्दगी की यात्रा में अपने साथ इतनी सारी शिकायतों का पिटारा ( negative energy) ले कर चलते है की कई सारे अच्छे दृश्य, विचार और पारस्परिक अनुभव भी नजर नहीं आते,बेहतर होंगा की हम अपने दोनों हाथ और अपने दिमाग में थोडा सी रिक्त जगह (space) बनाते हुए चले ताकि हमें हर वो छोटी से छोटी चीज नजर आये और बहुत बारीक़ से भी बारीक आवाज़ भी हमें सुनायी दे और हर अच्छे विचारों को पकड़ और पढ़ पाएं.

मन को छू लेने वाले शब्द है - यदि शांत मन और मजबूत दिमाग से जो जिंदगी की यात्रा करते है उनके लिए तो धुप भी पिगली हुई बर्फ जैसी है.

अमित....



January 26, 2018

पैसा जो न खरीद पाया !!!





पैसा जो न खरीद पाया !!!


                                                                                   
                                                                                         


पैसा जो न खरीद पाया,वो है प्यार !!!
पैसा जो न खरीद पाया वो है प्यार , इस चित्र मैं  दिखता हुआ प्यार बाप और बेटी का है.. दोनों गरीबी में जी रहे है परन्तु बेटी आज भी अपने पिता को राजा जैसा मानती है और पिता भी अपनी बेटी को अपनी जिन्दगी का सब कुछ  मानता है. .





             पैसा जो न खरीद पाया, वो है  सम्मान!!!
   पैसा जो न खरीद पाया वो है सम्मान, जिसे कड़ी मेहनत से कमाना          पड़ता है किसी भी मंडी में ये न तो मिलता है और ना ही मिलेंगा. हाँ इसे      कड़ी मेहनत के बल पर बनाया या अर्जित किया जा सकता है. सम्मान                                                        पाने के लिए करनी और कथनी में मिलाप होना जरूरी होता है वरना       चाटुकारिता भी एक सम्मान होता है..




पैसा जो न खरीद पाया,वो है योग्यता!!!
पैसा जो न खरीद पाया वो है योग्यता,जो की परिस्थितीवश  सबके हिस्से में नहीं आ पाती और  जिसे पाने के लिए बहुत सारे त्याग की आवश्यकता होती है.शिक्षित और ज्ञानी तो बहुत है समाज में पर बहुत कम ही लोग है  जो योग्य है..


पैसा जो न खरीद पाया,वो है मित्रता!!!
पैसा जो न खरीद पाया वो है मित्रता. मित्रता एक दुर्लभ जिम्मेदारी न की अवसर. सिक्के के दो पहलु जैसी होती है मित्रता - सम्पन्नता आपकी मित्रता में इझाफा करती है और विप्पती  उसकी परख.बहुत सारे लोग मित्रता की परख करते रह जाते है और कोई इसे संजो कर निभाता चला जाता है..






पैसा जो न खरीद  पाया, वो है विश्वास!!!
पैसा जो न खरीद पाया वो है विश्वास.विश्वास बहुत ही  छोटा और सरल शब्द है परन्तू पुरी दुनिया इस शब्द में समाहित है.विश्वास  वैचारिक, भावनात्मक और आर्थिक आयामो से बंधा होता है जिसे हम रोज़मर्रा की  
                                                    बातो में हमारे शब्द,हमारे समय, हमारे व्यवहार से तौलने की कोशिश करते
                                                    है. विश्वास खुद पर हो तो ताकत, दुसरो पर हो तो हिम्मत बन जाता है. 
                                            स्वामी  विवेकानंदजी ने बहुत ही बढ़िया तरीके से विश्वास को परिभाषित किय है-
 वह नास्तिक है जो अपने आप में विश्वास नहीं रखता..





अमित .....

January 24, 2018

गुस्सा !!!! एक जलता हुआ कोयला


!!!! गुस्सा, एक जलता हुआ कोयला !!!!



गुस्सा, एक जलता हुआ कोयला,जो पकड़ने वाले के हाथ को ही जलाता है।



गुस्सा, जो आपको अपनो से दूर कर देता है।
गुस्सा , जो आपकी पूरी सवेंदना को खत्म कर देता है।
गुस्सा, जो आपसे आपकी पहचान छीन लेता है।
गुस्सा, जो आपसे आपका नियंत्रण छीन लेता है।
गुस्सा, जो आपको अंदर तक व्यथित कर देता है।
गुस्सा,जो आपसे आपकी क्रियाशीलता को छीन लेता है।
गुस्सा,जो आपसे अच्छे और बुरे की समझ छीन लेता है।


गुस्सा, एक जलता हुआ कोयला,जो पकड़ने वाले के हाथ को ही जलाता है।



गुस्सा,जो आपको भीड़ में भी अकेला कर देता है।
गुस्सा,जो आपकी भूख और प्यास दोनो को छीन लेता है।
गुस्सा,जो आपको मझधार में ला खड़ा करता है।
गुस्सा,जो आपसे आपके शब्दो की परख छीन लेता है।
गुस्सा,जो आपको आवेश में गलत हरकत करने के लिए बाध्य करता है।
गुस्सा,जो आपसे गलती ही करवा बैठता है।
गुस्सा,जो आपकी हंसी छीन लेता है।


गुस्सा,एक जलता हुआ कोयला,जो पकड़ने वाले के हाथ को ही जलाता है।


गुस्सा,जो आपको समय से पीछे ला देता है।

गुस्सा,जो आपको शक के दायरे में ला खड़ा करता है।
गुस्सा ,जो आपको पतन की ओर ले जाता है।




गुस्सा,एक जलता हुआ कोयला,जो पकड़ने वाले के हाथ को ही जलाता है।


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अमित

January 17, 2018

ताना बाना - जिन्दगी का !!!

ताना बाना है जिन्दगी!!!

         देखा गया है की जिन्दगी को सवारने में लोग इतने मशगुल हो  जाते है की समझने का वक़्त ही नहीं मिलता और  जब समझना शुरू करते है तब तक हौसले जवाब  दे चुके होते है.....

         जिन्दगी के आयामों और नियामतो को पहचानने में, हम (मनुष्य)बहुत समय लगा देते है जबकी  उपरवाला सबको सबके हिस्से की नियामते लिख के भेजता है. हमारा गुरूर ही होता है, जो क्षणिक प्रफुल्लित होकर हमें  हमारी  निष्पक्ष और निष्कपट  सोचने  की विशेषता को छिन्न- भिन्न  कर देता है और हम हमारे भौतिक वस्तुओं के छाव में गर्विष्ट ( घमंड) का  अनुभव  करते है.

         जिन्दगी,
क्या है परिभाषा इसकी ?

बहुत सारे ज्ञानी लोगो ने इसे अपने अपने तरीके से,नजरिये से परिभाषित किया है परन्तु जैसे इस संसार में रहने वाले  सभी मनुष्यों स्वाद,रंग,भाषा और विचार अलग अलग होते है उसी प्रकार सभी की परिभाषा भी अलग होती है.

कोई जिन्दगी को मुस्कुराते हुए जीता है,कोई इसे घुट घुट कर जीता है...

 जिन्दगी को  हंस के, खुल कर जीने मैं जो मजा है शायद वो किसी चीज मैं नहीं है, जिन्दगी खुद एक हमारी गुरु,मार्गदर्शक है जो हमें हर पल हर घडी कुछ न कुछ सिखाते हुए चलती है.
हमारे जीने का प्रकार ही जिन्दगी की सही परिभाषा है.


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अमित